पूरी दोपहर फेसबुक और व्हाट्सएप में निकल गई I अचानक
अलार्मिंग टोन के साथ रिमाइंडर आया कि मोबाइल
की बैटरी 12 परसेंट ही बची थी I मैंने जल्दी से मोबाइल चार्जिंग पे रखा I मेरी कमर
और गर्दन के भी 12 बज गए थे I AC ऑन किया, एक एक्स्ट्रा कुशन गर्दन के नीचे रखा और
आँख बंद करके लेट गई I खुद को भी तो रिचार्ज करना था I
थोड़ी देर ही हुई होगी कि लगा जैसे मेरे सामने
वाले काउच पे कोई बैठा है I वो अचानक ऐसे ही बिना बताये टपक पड़ती है I अक्सर मैं उसे
इगनोर कर देती हूँ I लेकिन आज तो जैसे मैं पकड़ में ही आ गई थी I
बड़ी अजीब नज़रो से देख रही थी मुझे I मैंने पूछा,
- “कौन हो तुम ?”
उसने उसी लहजे में कहा,
- “तुम्हारी उम्र I जानबूझ कर अनजान बनने की कला
में निपुण हो तुम !”
एक बार तो ख़याल आया कि उसकी आँखों मे आँखें डाल
के कहूँ, क्यों मुंह उठाये चली आती हो बिना वजह I लेकिन मैंने खुदपे काबू करके
धीरे से कहा,
- “क्यों चुपचाप इस तरह देख रही हो जैसे मैं कोई
गुनहगार हूँ तुम्हारी ! तुम्हारा मौन भी आक्रामक लगता है ! अपनी आँखों के तरकश में
‘अब तक क्या किया है’ नाम का तीर भर के ले आती हो I ये सवाल कम और इलज़ाम ज्यादा
लगता है I
- पता नहीं क्यों तुम बिना वजह मुझे अवॉयड करती हो
I मै तो शुभचिंतक हूँ तुम्हारी I चलो आज मुझे अपनी दोस्त समझ के अपने मन की सारी
बातें कह दो I निकाल लो अपने दिल की भड़ास I
आज उम्र का चेहरा मैंने पहली बार गौर से देखा I डर
का अस्तित्व तब तक है, जब तक आप उसका सामना नहीं करते I जब कोई बिना जजमेंट के
आपको सुनना-समझना चाहे तो अवसर नहीं गवाँना चाहिए I ऐसे में बेबाकी से और इमानदारी
से अपनी बात कह देने से कई बार वो गिरहें खुल जाती हैं जो हमें दिखाई नहीं देती I आज
आत्मसाक्षात्कार का मौका है लगा कि उड़ेल दूँ खुदको I
- मैं Neo-upper-middle class की लाखों औरतों में
से एक हूँ I वैसे क्लास-व्लास में मेरा विश्वास नहीं है लेकिन इस Jargon से सोशल इमेज
का अंदाजा तो लग जाता है I Professionally qualified हूँ, intelligent हूँ, smart
हूँ - पूरी दुनिया की awareness हैं मुझे ! यदि career पे फोकस किया होता तो इंद्रा
नूयी ना चंद्रा कोचर ना सही कम से कम एक successful professional तो होती I जीवन
के हर मोड़ पर उस वक़्त जो उचित लगा, वो किया मैंने I कुछ फैसले सहीं थे, कुछ ग़लत और
कुछ अपेक्षाओं पे खरे नहीं उतर पाए I लेकिन हर बार अपनी सफलता और असफ़लता से कुछ न
कुछ नया सीखा है I बेटी से मां बनने के बीच कितने रिश्ते जुड़ते चले गए हैं मुझसे I
सभी रिश्ते अच्छे से निभाती आई हूँ I मैंने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी हैं I
अपने कर्तव्यों का पूरी इमानदारी से निर्वाह किया है और खुशियाँ बांटने की भरपूर कोशिश
की है I आसान नहीं होता सबको खुश रख पाना I लेकिन मैंने पूरी कोशिश की है I अपने
व्यक्तित्व को निखारने के लिए भी जो बन पड़ा किया है मैंने और आज भी कर रही हूँ I
सीखने का कोई मौका नहीं छोड़ती I ”
- self-sympathy या अपने आपको justify करने की कोई
ज़रूरत नहीं है तुम्हें I तुम्हारी एक बात मुझे
बहुत अच्छी लगती है कि तुम अपने आप से अपेक्षाएं रखती हो और खुद से उम्मीदें भी है
तुमको I तुम एक छोटी सी जिज्ञासु बच्ची की तरह हो I मैं उस बच्ची के आड़े आना नहीं
चाहती I लेकिन कई दिनों से देख रही हूँ कि तुम अपने चेहरे पे उभर आई अनचाही लकीरों
को देखती हो और मुझे कोसती रहती हो I चेहरे पर दस्तख़त करना और मन में दस्तक देना मेरी
नियति है I तुम्हें याद है जब तरुणाई की तरंगो ने तुम्हारी आँखों को चमकीला कर
दिया था I किसी पहाड़ी नदी की मदमस्त लहरों सी आत्ममुग्ध
होकर इठलाती फिरती थी तुम I तब तो तुमने याद नहीं किया मुझे !
अपने मन के कोने में झाँक के देखो ज़रा- ढेरों
गिफ्ट पैक रखे हैं मैंने तुम्हारे लिए I अनुभवों के अनमोल मोतियों की मालाएं पिरो
रखी हैं उनके भीतर I ये वही मोती हैं जो हमने साथ-साथ चुने थे I कितनी मेहनत और
लगन से मिले हैं ये I इसे न कोई चुरा सकता है न कॉपी कर सकता है I कब खोलोगी
इन्हें ?”
सचमुच आज मुझे वो बिछड़ी हुई किसी पुरानी सहेली सी
लग रही है जो हर मोड़ पे वो एक नया उपहार लेके मेरे सामने आती थी I याद दिलाती थी कि
समय की क़द्र करूँ I बहुत से बकाये काम हैं जिन्हें नज़र अंदाज़ किये जा रही हूँ I
अपनी priority को set करना अब नहीं तो कब सीखूंगी !”
- “फिर किस सोच में पड़ गई हो ?”
उसने स्नेह से मेरे दोनों कंधों को अपनी तरफ करके
मेरी आँखों में झाँकाI
मैं रोक नहीं पाई अपने आपको I आँखों में आंसू आ
गए I
- “माफ़ कर दो मुझे I मैं अब तक तुम्हें ग़लत समझ रही
थी I तुम्हारी कद्र करने का सलीका ही नहीं सीख पाई I बहुत कुछ करना बाकी है अभी I लेकिन
समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ I”
वो करुणा और प्रेम से देख रही थी मेरी तरफ I एक
अजीब से डर ने मुझे अन्दर से झंकझोर दिया I
- “तुम मेरा साथ छोड़ तो नहीं दोगी ना?”
- “देखो अभी तो यही हूँ - तुम्हारे सामने, तुम्हारे
साथ I तुम्हारी दोस्त हूँ और ऑडिटर भी ! आती रहूंगी remind करवाने कि क्या होना
था, क्या हुआ है और अभी क्या बाकि है ! बहुत उम्मीदें हैं मुझे तुमसे I अभी भी तुम्हें इस दुनिया को बहुत कुछ देना है
I जिस जगह जाओगी लगेगा कोई तुम्हारा रास्ता देखता मिलेगा I उठो, देखो तो सही कितना
कुछ करने को है I उदास आँखों में सपने भरो, बंद होठों को मुस्कुराना सिखाओ, किसी
रोते हुए को गले लगाओ, एक नन्हा पौधा लगाओ, कोई गीत गाओ, किसी धुन पे पाँव उठें तो
रोको मत अपने आप को, कोरे कागज़ में अपने मन के सतरंगी आसमान को उकेरो, कोई कविता लिखो,
कहानी कहो I खुशियाँ भीतर ही हैं ज़रा गुगुदाओ इनको खिलखिलाती हुई बाहर आ जाएँगी और
अपने आस-पास भी बिकार जाएँगी I फैलाओं अपना आँचल- बाँटना और बटोरना शुरू करदो !”
अचानक आँख खुली I मन की बैटरी का चार्ज फुल हो
गया है I
आज मैंने अपने आपको एक वचन दिया है कि उम्र चाहे कम
पड़ जाए लेकिन ‘मैं’ उम्र को कम नहीं पडूँगी !
जय हो...
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