मिट्टी से रेत का रिश्ता....
बात उन दिनों की है जब भारत छोड़ के दुबई शिफ्ट हुई थी I अपनी
जड़ों को मिट्टी के अन्दर सहेज के आयी थी I सोचा था बस 2-3 वर्षों की बात है I
देखते-देखते कब दस साल बीत गए पता ही नहीं चला I
एक अजीब दुनिया है यहाँ की I बड़ी-बड़ी सुन्दर इमारतों के भीतर ही सैकड़ो फ्लैट्स
होते हैं I अपने देश में जैसे भिन्न-भिन्न प्रान्तों के लोग एक मोहल्ले में रहते
हैं वैसे ही यहाँ विभिन्न देशों के लोग रहते हैं I
यूँ समझ लें कि एक बिल्डिंग मतलब एक बड़ा सा ग्लोबल वर्टीकल मोहल्ला- लेकिन ना
हल्ला ना गुल्ला!
ज़्यादातर बिल्डिंगों (अंग्रेजी शब्दों का बहुलिंगीकरण हक़ से करते हैं हम
हिन्दुस्तानी) के पास ही सुन्दर सा पार्क होता है जहाँ सब कुछ व्यवस्थित और अलग-अलग
होता है-बच्चों के खेलने की जगह अलग, साइकिल चलाने की अलग, बड़ों के जॉगिंग की अलग,
वाकिंग की अलग, सुस्ताने की अलग I बीच-बीच में अल्ट्रा क्लीन टॉयलेट्स और छोटे-छोटे
water dispenser booths होते हैं जिसमें से पानी की बोतलें सिक्के डालकर निकाली
जाती हैं I
देखा जाए तो ये एक हाईटेक प्याऊ है, जहाँ पानी मुफ्त नहीं, बिकाऊ है!
मुझे याद है हमारे मोहल्ले में कुछ निराशावादी फुरसतिया बुजुर्गों की एक टोली हुआ
करती थी जो दुनिया भर की चकल्लसों को चाय की चुस्कियों में निपटा देती थी I कभी
मोहल्ले की किसी दुकान के सामने या किसी के घर के आँगन के आगे कुर्सी-चारपाई लगाके
ब्रिटेन की महारानी से लेकर गुप्ता जी की नौकरानी तक उनके राडार में रहतीं थींI
आस-पास जहाँ जिस पर नज़र पड़ जाए वहां ‘घोर कलयुग’ होने के तथ्यों को बटोरते I ये
उनका फेवरेट टाइम-पास सब्जेक्ट होता था I “भैया, कलयुग है, सब कुछ व्यापार बन गया
है, देखिएगा एक दिन पानी भी बिकेगा I”
पास ही बच्चों के छोटे-बड़े ढेरों झुण्ड तरह-तरह के खेल में मशगूल रहते I बीच-बीच
में कभी कोई गेंद या गिल्ली आ गिरती उनके आस-पास, यदि लगे न तो हिदायत देकर वापस
कर देते थे I
उन दिनों मैंने नया-नया साइकिल चलाना सीखा था I बड़े जोश में जोर-जोर से चला
रही थी कि अचानक कण्ट्रोल बिगाड़ा और मैं लहरा कर उनकी मण्डली के एक अंकल के पास
आकर गिरी I लेकिन मेरी इज्ज़त गिल्ली से भी गयिबीती थी I sympathy जताने के बदले उन
चिढ़चिड़े अंकल ने भन्ना के जोर से फटकारते हुए भगाया था मुझे वहां से I
कन्या बचाओ नहीं कन्या-भगाओ में विश्वास था उनका !
ऐसा उत्श्रंखल बचपन अब नहीं होता I
एक बेहद खूबसूरत बिल्डिंग में ज़मीन से कई मीटर ऊपर एक सुन्दर से फ्लैट में
रहते हैं हम लोग I जहाँ से किसी पोस्टर की तरह दिखने वाला समंदर और लेगो टॉयज जैसे
दिखने वाली इमारतें पास से नज़र आतीं थीं !
अपनी बालकनी से जब देखती तो एक तरफ दूर नीले समंदर की ख़ामोशी और दूसरी तरफ शहर
की तेज रफ़्तार को देखकर लगता है कि- मेरे जैसा ही है ये शहर, कभी भाग रहा है और
कभी ठहर गया है I
वैसे तो नये परिवेश और नयी चुनौतियों की आदि हूँ मैं, लेकिन यहाँ की दुनिया, यहाँ
के तौर तरीके और इस शहर का मिज़ाज, सब कुछ अलग था I समझ नहीं आता था कि कब ख़ुद को
इस नए माहौल में ढाल पाऊँगी और यहाँ अपनी पहचान बना पाऊँगी I फिर से अपने-आपको
साबित करने की वही पुरानी जद्दोज़हद !
मैं सारा दिन अपने घर को सजाती-सवारती पर ना कोई आने-जाने वाला था ना सराहने
वाला! ख़ुद ही देखती और ख़ुश होती लेकिन कभी-कभी मन बहुत उदास हो जाता था I इससे पहले
अकेलेपन का कभी एहसास ही नहीं हुआ क्योंकि घर-परिवार, दोस्त साथ थे !
घर खाली सा और मन सूना-सूना I
फिर एक रोज़ वो शाम आयी जिसने मेरी आने वाली सारी शामों को बदल दिया I कुछ ऐसे
लोगों से मुलाक़ात हो गई जो मेरी तरह इस देश में आकर अपने-आप को टटोलने की कोशिश कर
रहे थे I
बस एक घर पे एक ‘get-together’ रखा और वो लोग बेतक़ल्लुफ़ी से घर आ गये I कुछ लोग अपने साथ ले आये तबला, हारमोनियम,
कीबोर्ड गिटार... कुछ लोग गाने वाले थे कुछ बजाने वाले I वाद्य छिड़ गए और सुर बिखर
गए, लगा जैसे सरस्वती का प्रवेश हो गया हो मेरे घर मेंI घर सुन्दर तो था ही, अब सुरीला
भी हो गया I
वही गीत जिनसे हमारी बहुत बहुत सी यादें जुड़ी होतीं है, घर में गूंजने लगा I
एक नया दौर शुरू हो गया I मेरा घर गाने-बजाने वालों के रियाज़ करने का अड्डा बन
गया I जीवन में जैसे रस भर गया I जो दिन लंबे लगते थे, पलक झपकते ही पखेरू हो गये
I गानें की किताबो के ऊपर से और वाद्यों पे जमी धूल उड़ गयी I जो सुनने के शौकीन
थे, वे भी आ जाते I एक जैसे शौक और फ़ितरत
वाले लोग मिल गये I
लोग नए थे लेकिन रिश्ता पुराना था- दोस्ती का रिश्ता ! कुछ लोग पाकिस्तान से
भी थे I शुरू –शुरू में थोड़ी हिचक सी
ज़रूर हुयी थी, क्योंकि जब किसी पाकिस्तानी का तसव्वुर आते ही दिमाग में सरहद पर बन्दुक
ताने खड़े होने वाले किसी दुश्मन सिपाही की छवि अंकित हो जाती थी I लेकिन शाम को
उन्हीं को हार्मोनियम हाथ में लिए पुराने हिंदी गाने और कृष्ण के भजन गाते सुनती
तो यक़ीन पक्का हो जाता कि संगीत का कोई मज़हब नहीं होता, कोई जात नहीं होती I वो के
एक शिद्दत है, इबादत है, सेवा है I
शायद इसलिए अपने देश में दुश्मन लगने वाले, पराये देश में अपने से लगने लगे !
संगीत ने सबको संगी बना दिया I
मुझे भी अच्छा माहौल मिला तो मैंने भी फिर से लिखना शुरू कर दिया I छपना शुरू
हो गया, प्रशंसा मिली, नाम हुआ I
फिर एक दिन एक जाने-माने अरबी साहित्यकार डॉ. इज़दिन इब्राहीम मुस्तफ़ा से
मुलाक़ात हो गई I वे UAE के founding किंग शेख़ ज़ायद के सांस्कृतिक सलाहकार, मित्र
और UAE की पहली यूनिवर्सिटी के पहले वाईस-चांसलर थे I उन्होंने मुझे अपनी बेटी बना
लिया और कहा कि अब ये देश मेरा मायका हो गया है !
घर के सामने शाम को जब मस्जिद में अज़ान होती तो, मुझे याद आता कि अपने घर के
मंदिर में दिया लगाना है I
बालकनी में खिले गुलाब का रंग और खुशबू भी वही होती है - जो अपने देश में होती
हैI
मेरी भाषा, मेरा पहनावा, मेरा खान-पान, कुछ भी नहीं बदला है I इज़्ज़त की रोटी
प्रेम से मिल रही है I वही ख़ुशबू है, वही स्वाद है I
कभी-कभी अपने घर परिवार वाले या दोस्त, भारत से यहाँ आते हैं, घुमने के लिए I
इस देश की भव्यता और सादगी के अनूठे संगम को देख कर बहुत ख़ुश होते हैं I
इस देश ने बहुत कुछ दिया है I साथ दिए है कुछ अहसास, कुछ रिश्ते- ज़िन्दगी भर
के लिये I ये देश अब पराया नहीं लगता I
होली भी मनाते है, गरबा भी होता है और दुर्गा पूजा की ढाकी की थाप भी खूब गूंजती
है I दिवाली और ईद की रौनक एक सी होती है I
घर में हवन भी करते है, मंदिर में पूजा भी और गुरूद्वारे में लंगर का
स्वादिस्ट प्रसाद भी चखते हैं I
15 अगस्त और 26 जनवरी दोनों दिन झंडा वन्दन होता है I रंगारंग कार्यक्रम होते
है I देश भक्ति के गीत दिन भर गूंजते है ढेरों हिंदी FM पे I UAE के नेशनल डे मनाते
हैं तो अनायास ही तिरंगा फहराने वाली ख़ुशी का एहसास होता है I
देश अपना हो या पराया, सिर्फ अहसास ही तो हैं जो जोड़े रखते है अपनों को अपनों
से और अपने आप से I
मिट्टी से रेत का रिश्ता बहुत पुराना है, इसलिए एक नयी जड़ मैंने यहाँ भी सहेज
के लगा रखी है I
जय हो...
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